श्री नैना देवी जी की पूजा अर्चना एक दिन में 5 बार की जाती है| श्री माता जी को विभिन्न प्रकार के "भोग" पांच अलग अलग आरतियों में लगवाये जाते हैं|
आरती
जय अम्बे गौरी, मय्या जय श्यामा गौरी
तुमको निष् -दिन ध्यावत,हरी ब्रह्मा शिवरी [१] जय अम्बे गौरी
मांग सिन्दूर विराजत,तिको मृग -मद को
उज्जवल से दोउ नैना,चन्द्र वादन निको [२] जय अम्बे गौरी
कनक सामान कलेवर,रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प गल-माला,कंठन पर साजे [३] जय अम्बे गौरी
केहरी वहां रजत खडग खपर धारिसुर नर मुनि जन सेवत ,
तिनके दुःख हारी [४ ] जय अम्बे गौरी
कानन कुंडल शोभित, नास-अग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सुम रजत ज्योति [५] जय अम्बे गौरी
शुम्भ नि-शुम्भ विदारे, महिषासुर घटी
धूम्र -विलोचन नैना , निष् -दिन मद मतइ [६] जय अम्बे गौरी
चंद मुंध संघ-हारे,शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे,सुर भे हीन करे [७] जय अम्बे गौरी
ब्रह्मणि रुद्रानी, तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी [८] जय अम्बे गौरी
चों -सथ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू [९] जय अम्बे गौरी
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता
भक्तो की दुःख हरता, सुख सम्पति करता [१०] जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित,वर मुद्रा धारी
मन वांछित फल पावत, सेवत नर नारी [११] जय अम्बे गौरी
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाटी
श्री माल-केतु में रजत, कोटिक रतन ज्योति [१२ ]जय अम्बे गौरी
श्री अम्बे-जी-की आरती, जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी,सुख सम्पति पावे [१३] जय अम्बे गौरी
माता दुर्गा के नाम
- दुर्गा
- दुर्गातिर्समिनी
- दुर्गापद्विनिवारिन
- दुर्गामाच्चेदिनी
- दुर्गसाधिनी
- दुर्गानासिनी
- दुर्गातोद्धारिन
- दुर्गेनिहंत्री
- दुर्गमापहा
- दुर्गामाजनाडा
- दुर्गादैत्यालोकादावानाला
- दुर्गम
- दुर्गमालोका
- दुर्गामात्मस्वरुपिं
- दुर्गमार्गप्रदा
- दुर्गमविद्या
- दुर्गामासृता
- दुर्गामाजनासम्स्थाना
- दुर्गामाजनासम्स्थाना
- दुर्गमोहा
- दुर्गमगा
- दुर्गामाँरथस्वरूपिन
- दुर्गामासुरासन्हंत्री
- दुर्गामयुधाधारिन
- दुर्गामंगी
- दुर्गमता
- दुर्गम्य
- दुर्गामेस्वरी
- दुर्गभीमा
- दुर्गभामा
- दुर्गाब्बा
- दुर्गादारिन
जयकारे
- जय माता दी
- सांचे दरबार की जय
- सचियाँ जोत्तान वाली माता तेरी सदा ही जय
- गरब जून वाली माता तेरी सदा ही जय
- ऊँचे पहाड़ो वाली माता तेरी सदा ही जय
- बोल सांचे दरबार की जय
- सारे संसार विच शांति देण वाली माता तेरी सदा ही जय
- सर्वत्र दा भला करन वाली माता तेरी सदा ही जय
हम घंटी क्यूँ बजाते हैं ?
घंटी बजने से "ओम" की शुभ ध्वनि पैदा होती है जोकि भगवान के सार्वभौमिक ध्वनि के साथ मेल खाती है| घंटी बजने के लाभ यह है कि यह सब अशुभ और ध्यान भंग करने वाली ध्वनियों को दूर रखती है ताकि आरती के दौरान भक्तों का ध्यान केंद्रित किया जा सके|
दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,नमो ननियो आंबे दुःख हरनी निराकार है ज्योति तुम्हारी,तिहूँ ओके पहेली उजयारी शशि ललाट मुख महाविशाला,नेत्र लाल भृकुटी विकराला रूप मातु को अधिक सुहावे,दरस करत जन अति सुख पावे तूर्ण संसार शक्ति इया किना,पालन हेतु अन्ना धन दमा अन्नपूर्ण हुई जग पला,तुर्न्ही अदि सुंदरी बाला प्रलय कला सब नाशन हाँ,तूर्ण गौण शिव-शंकर प्यारी शिव योगी तुम्हरे गुना गावें,ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें रूप सरस्वती को तूर्ण धरा,दे सुबुद्धि ऋषि मुनिना उबर धर्यो रूप नरसिम्हा को अम्बा,प्रगट भयीं फार कर खम्बा रक्षा करी प्रहलाद बचायो,हरनाकुश को स्वर्ग पठायो लक्ष्मी रूप धरो जग महीन,श्री नारायण अंगा समिहहीं क्षीर सिन्धु में करत विलासा,दया सिन्धु,दीजे मन असा हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,महिमा अमित न जेट बखानी मातंगी धूमावती माता,भुवनेश्वरी बागला सुखदाता श्री भैरव लारा जोग तरनी,छिनना भला भाव दुःख निवारानी केहरी वहां सोह भवानी,लंगूर वीर चालत अगवानी कर में खप्पर खडग विराजे,जाको देख कल दान भजे सोहे अस्त्र और त्रिशूला,जसे उठता शत्रु हिय शूला नगरकोट में तुम्ही विराजत,तिहूँ बक में डंका बजट शुम्भु निशुम्भु दनुज तूर्ण मरे,रक्त-बीजा शंखन सम हरे महिषासुर नृप अति अभिमानी,जेहि अघा भर माहि अकुलानी रूप कराल कलिका धरा,सेन सहित तूर्ण तिन सर्न्हारा पण गढ़ा संतान पर जब जब, भाई सहाय मातु तूर्ण तब तब अमर्पुनी अरु बसवा बोका,तवा महिरना सब रहें असोका जवाबा में है ज्योति तूर्ण हाँ ,तुम्हें सदा पूजें नर नान . प्रेम भक्ति से जो यश गावे,दुःख-दंद्र निकट नहीं अवे . ध्यावे तुम्हें 10 नर मन इई ,जनम-मरण ताको चुटी जी . जोगी सुर-मुनि कहत पुकारी,जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी . शंकर आचारज ताप कीन्हों,कम ,क्रोध जीत सब लीन्हों . निसिदिन ध्यान धरो शंकर को,कहू कल नहिनी सुमिरो तूर्ण को शक्ति रूप को मरण न पायो,शक्ति गयी तब मन पछितायो शमागत हुई कीर्ति बखानी,जय जय जय जग्ग्दम्बे भवानी . भाई प्रसन्ना आदि जगदम्बे,दाई शक्ति नहीं कीं विलम्बा मोकों मातु कष्ट अति घेरो,तूर्ण बिन कौन हरे दुःख मेरो आशा तृष्णा निपट सातवें,मोह मदादिक सब बिन्सवें शत्रु नाश कीजे महारानी.सुर्निरों एकचित तुम्हें भवानी करो कनिपा हे मातु दयाला, रिद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला जब लगी जियूं दया फल पाऊँ,तुम्हरो यश में सदा सुनाऊँ दुर्गा चालीसा जो गावे,सब सुख भोग परमपद पावे देव दस शरण नीजे जाने करहू कृपा जदम्बा भवानी
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