मंदिर स्थल पर महत्वपूर्ण स्थान |
श्री नयना देवी जी मंदिरश्री नयना देवी जी मंदिर संगमरमर से निर्मित है और देखने में बहुत शानदार लगता है| मंदिर का पहला द्वार चांदी से बना है जिस पर देवताओं की सुन्दर आकृतियाँ नक्काशित की गयी हैं| मंदिर का मुख्य दरवाजा भी चांदी से मढ़ा है और उस पर भगवान सूर्य और अन्य देवताओं की तस्वीरें है| मुख्य मंदिर में तीन पिंडियाँ हैं| जिनमे से एक मुख्य पिंडी माँ श्री नयना भगवती की और दो सुन्दर आंखे हैं| दाएं तरफ दूसरी पिंडी भी माँ की ऑंखें हैं और एसा माना जाता है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में पांडवों के द्वारा की गयी थी| बाईं ओर भगवान गणेश की एक मूर्ती है| मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर शेर की दो मूर्तियाँ हैं| गुफाश्री नैना देवी जी की गुफा 70 फुट लम्बी है और मुख्य मंदिर के पास है| इससे पहले, लोग मंदिर तक पहुँचने के लिए खड़ी पथ का इस्तेमाल करते थे परन्तु अब केबल कार की सुविधा यात्रा में काफी मदद करती है| रस्से का मार्ग
कृपाली कुंडजब देवी माँ ने दानव महिषासुर को हराया, तो उन्होंने उसकी दोनों आँखें निकाल दीं और उन्हें नैना देवी की पहाड़ियों के पीछे की ओर फेंक दिया| दोनों आँखें अलग-अलग स्थानों पर गिरीं और बाद में वहां दो बावड़ियाँ उत्पन्न हो गईं| ये दोनों बावड़ियाँ मंदिर से २ कि०मी० की दूरी पर हैं| इनमें से एक को 'बम बावड़ी" या "झीडा की बावड़ी" और अन्य को "भुभक बावड़ी" कहा जाता है| कृपाली कुंड के बारे में एक अन्य कथा यह है कि इसे भगवान ब्रह्मा द्वारा उस स्थान पर बनाया गया जहाँ महिषासुर की खोपड़ी गिरी थी| इसे ब्रह्म कृपाली कुंड भी कहा जाता है| खप्पर महिषासुरयह भवन के पास एक एक पवित्र स्थान है, जहाँ भक्त दर्शन करने से पहले स्नान के लिए जाते हैं| काला जोहरइस स्थान को 'चिक्षु कुंड’ भी कहा जाता है| महिषासुर के मुख्य कमांडर चिक्शुर की खोपड़ी इस स्थान पर गिरी थी| यह एक पवित्र स्थान है जहां लोग त्वचा की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए,विशेष रूप से बच्चों को स्नान करवाने के लिए आते हैं| कोलां वाला टोबायह जगह कमल खिलने के लिए लोकप्रिय है और श्री नैना देवी जी की यात्रा में पहला पड़ाव है| यहाँ पानी का एक पवित्र तालाब है जहाँ लोग दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं| मंदिर न्यास द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए 1.25 करोड़ रूपये निवेश किये गए हैं| |